Doddagaddavalli Lakshmi Devi Temple : Lakshmi Devi Temple : इस लक्ष्मी मंदिर में दर्शन करने से होती है अपार धन की प्राप्ति, देखे क्यों है खास
Doddagaddavalli Lakshmi Devi Temple : Lakshmi Devi Temple : इस लक्ष्मी मंदिर में दर्शन करने से होती
भारत में यूं तो अनेक मंदिर है और उनकी अलग-अलग मान्यताएं भी है। उन्ही मंदिरो में से एक मंदिर लक्ष्मी देवी मंदिर है जो भारत के कर्नाटक राज्य के हासन जिले के डोड्डागड्डावल्ली गांव में स्थित 12वीं शताब्दी का एक प्रारंभिक हिंदू मंदिर परिसर है। इस मुख्य मंदिर में चार मंदिर हैं। पूर्वी मंदिर में देवी लक्ष्मी हैं, उत्तरी मंदिर काली-दुर्गा को समर्पित है, पश्चिमी शिव को, और दक्षिणी मंदिर खाली है और संभवतः विष्णु है। परिसर में मुख्य मंदिर के उत्तर-पूर्व में एक अलग भैरव मंदिर है, और लगभग चौकोर प्राकार (यौगिक) के अंदर कोनों पर चार छोटे मंदिर हैं। यह हम सभी जानते हैं कि मां लक्ष्मी 'धन की देवी' हैं। मां लक्ष्मी को जो भक्त सच्चे मन से पूजा-पाठ करता है उसके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। धनतेरस और दिवाली के दिन लगभग हर भारतीय घरों में मां लक्ष्मी की पूजा बड़े ही उत्साह के साथ की जाती है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे दिल से पूजा पाठ करता है उस पर मां का आशीर्वाद बना रहता है।
दोडगड्डवल्ली लक्ष्मी देवी टेंपल
इस पवित्र मंदिर का नाम 'Doddagaddavalli Lakshmi Devi Temple' है। कर्नाटक के हसन में स्थित यह मंदिर बेहद ही खूबसूरत और अद्वितीय सरंचना का प्रतीक है। श्री लक्ष्मी नायारण या महालक्ष्मी को समर्पित यह भारत का एक ऐसा लक्ष्मी मंदिर है जहां हर दिन भक्तों की भीड़ लगी रहती हैं।। खासकर धनतेरस और दिवाली के दिन यहां सबसे अधिक भक्तों की भीड़ होती हैं।
क्या है इस मंदिर का इतिहास ?
दोडगड्डवल्ली लक्ष्मी मंदिर का इतिहास बेहद ही दिलचस्प है। इस पवित्र मंदिर के बारे में बोला जाता है कि यह मंदिर लगभग 1 हज़ार साल से भी प्राचीन है। कई लोगों का मानना है कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण होयसल साम्राज्य के शासक विष्णुवर्धन के काल में किया गया था। एक अन्य कहानी है कि राजा ने एक सपना देखा और अगले दिन से ही इस मंदिर का निर्माण शुरू करवा दिया।
पौराणिक कथा
दोडगड्डवल्ली लक्ष्मी मंदिर का इतिहास जिस तरह दिलचस्प है ठीक उसी तरह इस मंदिर की पौराणिक कथा भी दिलचस्प है। कहा जाता है कि इस मंदिर में आज भी महालक्ष्मी विराजमान है। जब इस मंदिर का निर्माण हो रहा था तो कई बार आकस्मिक घटना घटित हुई, लेकिन मंदिर को कुछ नहीं हुआ। इस पवित्र मंदिर के चारों दिशाओं में चार कक्ष का निर्माण किया गया है। गर्भगृह में स्थित देवी महालक्ष्मी के दाहिने हाथ में शंख और बाएं हाथ में चक्र है। इस पवित्र परिसर में नृत्यरत भगवान शिव, भैंसे पर सवार यम और समुद्र देवता वरुण की मूर्ति मौजूद हैं।
धनतेरस और दिवाली के दिन होती हैं भक्तों की भीड़
धनतेरस और दिवाली के दिन इस पवित्र मंदिर का दर्शन करने के लिए दक्षिण भारत के लगभग हर शहर से लोग पहुंचते हैं। कहा जाता है कि दिवाली के दिन जो भी यहां सच्चे मन से पूजा-पाठ करता है उसके घर कभी भी धन की कमी नहीं होती है। दिवाली से कुछ दिन पहले ही इस मंदिर को दीये से सजा दिया जाता है। इस दौरान मंदिर के आसपास कई कार्यक्रम का भी आयोजन होता है।